Vivek Shukla
April 25, 2025
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निर्जला एकादशी को भीषण गर्मी में व्रत रखने वाला बिना पानी पिएं रहता है। जो कि बहुत ही कठोर व्रत माना जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। तभी आपको फल की प्राप्ति होती है। जानिए इस पूजा-विधि, कथा के बारें में पूरी जानकारी।
हिंदू धर्म में सभी धर्मों में से एकादशी भी बहुत महत्वपूर्ण है। इन्हीं में से एक है निर्जला एकादशी। भगवान विष्णु को सभी व्रतों में एकादशी सबसे प्रिय है।
हिंदू शास्त्र पद्म पुराण के अनुसार एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति पर भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनके लिए मोक्ष का द्वार खुला रहता है। लेकिन एकादशी व्रत के कुछ नियम भी हैं जिनका पालन करना जरुरी होता है।

जो व्यक्ति यह व्रत नहीं भी रखते हैं उन्हें भी एकादशी के दिन कुछ नियमों का पालन करना चाहिए इससे जीते जी तो सांसारिक लाभ मिलता ही है मृत्यु के बाद भी परलोक में सुख मिलता है। इस बार निर्जला एकादशी 31 मई को है।
निर्जला एकादशी को भीषण गर्मी में व्रत रखने वाला बिना पानी पिएं रहता है। जो कि बहुत ही कठोर व्रत माना जाता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। तभी आपको फल की प्राप्ति होती है। जानिए इस पूजा-विधि, कथा के बारें में पूरी जानकारी।
ये है शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत है. यह व्रत 30 मई 2023 को दोपहर 01 बजकर 07 मिनट से शुरू होगा और 31 मई को दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर खत्म होगा. उदया तिथि के अनुसार, इस साल निर्जला एकादशी 31 मई 2023 दिन बुधवार को मनाई जाएगी.
ऐसे करें पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में जगकर सभी कामों से निवृत्त होकर भगवान का स्मरण करें। इसके बाद शेषशायी भगवान विष्णु की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद मन को शांत रखते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। इसके लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से करने के साथ रात को दीपदान करें। इस दिन रात को सोए नहीं। सारी रात जगकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें व रात में भजन कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।
अगले दूसरे दिन सुबह पहले की तरह करें। इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद खुद भोजन करें।
इस एकादशी का व्रत करने से अन्य तेईस एकादशियों पर अन्न खाने का दोष छूट जाता है-
एवं य: कुरुते पूर्णा द्वादशीं पापनासिनीम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्त: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥
इस प्रकार जो इस पवित्र एकादशी का व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।
कथा
एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?
तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा- कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
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